बकरी पालन से कैसे कमायें : पूरी जानकारी (Goat farming in Hindi)
बकरी पालन कम लागत और सामान्य रख-रखाव में बकरी पालन व्यवसाय गरीब किसानों और खेती करने वाले मजदूरों के लिए आय का एक अच्छा साधन बनता जा रहा है। राजस्थान ही नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में यह बकरियां बतौर एटीएम ATM के रूप में उनकी मदद करती है, लेकिन अभी भी जानकारी के अभाव में किसान उससे ज्यादा लाभ नहीं कमा पा रहे हैं।Cirg के वैज्ञानिकों का मानना है कि
"बकरी पालन व्यवसाय से किसानों की आय दोगुनी से तिगुनी की जा सकती है अगर किसान बकरी पालन को वैज्ञानिक तरीके से करें। बकरी पालन शुरू कर रहे तो उच्च नस्ल की बकरियों का चयन करें। स्टॉल फीडिंग के लिए बरबरी बकरी पालें और अगर चराई के लिए रखना है तो सिरोही बकरी का चयन करें। अगर किसान बकरी पालन शुरू कर रहे हैं तो प्रशिक्षण जरूर लें ताकि पशुपालकों को पूरी जानकारी रहे और घाटा न हो।"
बकरी पालन व्यवसाय से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कैसे हो
इसके बारे में वैज्ञानिकों ने कहा कि "अगर बकरियों को सही समय पर गर्भित कराते हैं तभी किसान को लाभ मिलेगा। उत्तर भारत में बकरियों को 15 सिंतबर से लेकर नवंबर और 15 अप्रैल से लेकर जून तक गाभिन कराना चाहिए। सही समय पर बकरियों को गाभिन कराने से नवजात मेमनों की मृत्युदर कम होती है।''
19वीं पशुगणना में भारत में बकरियों की कुल संख्या 135.17 मिलियन
विश्व में बकरियों की कुल प्रजातियां 103 प्रजातियां
भारत में पाई जाने वाली नस्लों की संख्या 21 नस्ले
बकरी पालन एक सस्ता और टिकाऊ व्यवसाय है जिसमें पालन का खर्च कम होने के कारण आप ज्यादा से ज्यादा मुनाफा ले सकते हैं। बकरी पालकर बेचने का व्यवसाय आपके लिए बहुत ही फायदेमंद और उपयोगी साबित हो सकता है।
बकरी पालन के व्यवसाय से निम्न तरीकों से मुनाफा कमाया जा सकता है: (How to make money from goat farming?)
- दूध देने वाली बकरियों को बेचकर,
- बकरियों को माँस के रूप में बेचकर,
- ऊन व खाल द्वारा प्राप्त आय से
- बकरी की मींगणियों को खाद के रूप में बेचकर।
बकरी पालन व्यवसाय लागत (Goat farming investment)
बकरी पालन शुरू करने के लिए आपको कम से कम (10 male + 1 female) कम से कम लागत 1,50,000 रूपये तक की जरूरत पड़ेगी।
जिससे आप बकरियों के लिए शेड,
उनका दाना-पानी और उनके देखभाल की जिम्मेदारी सकुशलता उठा पाएंगे।
यह लागत (goat farming investment) मुख्यतः आपको शुरुआती बकरियाँ खरीदने में, शेड बनाने में, बकरियों का चारा (fodder) खरीदने में आएगी। इस व्यवसाय से आपको अपनी लागत से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है।
गोट फार्मिंग ट्रेनिंग (Goat farming training)
बकरी फार्मिंग के प्रशिक्षण के लिए भारत में भी कई प्रशिक्षण संस्थान (goat farming training institutions) हैं जहाँ एडमिशन प्राप्त कर गोट फार्मिंग की उचित जानकारी हासिल कर सकते हैं। वहाँ आपको बकरी की नस्ल, उनके खान-पीन व उनकी सही प्रकार से देखभाल करने के बारे मे पूर्ण रूप से सिखाया जाएगा। साथ ही आपको गोट फार्मिंग मे उचित रूप से मुनाफा हासिल करना भी बताया जाएगा। भारत में गोट फार्मिंग का सबसे अच्छा प्रशिक्षण केंद्रीय बकरी अनुसंधान केंद्र (CIRG – The Central Institute for Research on Goat) में होता है। ये ट्रेनिंग सेंटर (training center) उत्तर प्रदेश के मथुरा में है। ट्रेनिंग का आवेदन आप इसकी बेबसाइट पर (Click) जाकर कर सकते हैं। वहाँ आपको सेंटर का ईमेल एड्रेस और फोन नंबर मुख्य रूप से दिया गया होगा आप वहाँ सम्पर्क कर सकते हैं।
इस प्रशिक्षण में आपको 6000 से 10,000 रूपये तक खर्च करना पडेगा जिसमें खाने पीने व रहने की व्यवस्था भी शामिल होंगी। ये संस्थाएँ आपको थ्योरिटिकल और प्रेक्टीकल (theoritical & practical) दोंनों रूप से गोट फार्मिंग (goat farming) सिखाएंगी।
बकरियों की सही नस्ल का चुनाव (Choosing the right goat breed)
बकरी पालन के लिए सही बकरी का चुनाव करते समय यह विशेष ध्यान रखें की जो भी बकरी की नस्ल (goat breed) आप चुनें वह आप जिस स्थान पर आप रहते हैं उस वातावरण में ढ़लने लायक हो। अपने स्थान के हिसाब से ही बकरियों की सही नस्ल का चुनाव करें जिससे वो वातावरण के अनुकूल खुद को ढा़ल पाएँ। आपकी मदद के लिए नीचे कुछ राज्यों के हिसाब से नस्लें दी गई हैं।
सिरोही, बीटल, सोजतब्लैक बंगालबारबरी, जमुनापरी
बकरीयो की नस्लों की अधिक जानकारी चाहते है तो click करें
बकरियों का टीकाकरण व डीवॉर्मींग :-
बकरियों का टीकाकरण करवाना चाहिए इनमें मुख्य रूप से चार बीमारी का डर होता है। यह बीमारियाँ व इनका टीकाकरण कुछ इस प्रकार से है:
एफ.एम.डी और एच.एस.:
ये टीके दो से चार महीने की उम्र मे लगते हैं फिर पुनः 4 से 6 महीने बाद लगते हैं।गोडपॉक्स: ये टीका हर 3 से 4 महीने के बीच में लगता है।
चेचक या गोटपॉक्स (Goat Pox Goat Disease )
यह विषाणु (वायरस) जनित भयंकर संक्रामक तथा छूत की बीमारी है । श्वसन प्रक्रिया, त्वचा के घाव के माध्यम से विषाणु स्वस्थ बकरियों के देह में प्रवेश करता है । एवं 2-7 दिनों के अंदर रोग के लक्षण उभरते है ।
Enterotoxaemia Goat Disease)
क्लॉसट्रीडियम परफ्रिन्जेन्स (Clostridicum perfringens) नामक जीवाणु द्वारा यह Goat Disease अर्थात रोग होता है । संक्रमित पानी तथा भोजन के माध्यम से रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु स्वस्थ बकरी के शरीर में प्रवेश करके आंत में टॉक्सिन (toxin) या विष उत्पादन करके यह रोग उत्पन्न करते हैं ।
पी.पी.आर. या गोट प्लेग (PPR or Goat plague)
इस Goat Disease को पेस्टी डेस पेटिटस रूमिनेन्टस (Peste des petits ruminants) या संक्षेप में पी.पी.आर. कहते हैं यह बकरियों की भंयकर छूत की बीमारी है । इसे बकरी का प्लेग भी कहते हैं । एक विशेष प्रकार का विषाणु बकरियों तथा भेड़ों में यह रोग फैलाता है । पशुमाता रोग सृष्ट करने वाले विषाणु तथा पी.पी.आर. विषाणु में कई समानताएं हैं । इन दोनों रोगों के लक्षणों में भी समानताएं हैं (तेज बुखार, अतिसार एवं सांस की तकलीफ) वर्ष 1989 में भारत में सर्वप्रथम भेड़ और बकरी के पीड़ित होने की सूचना मिलती है । वर्तमान भारत के सभी राज्यों में यह रोग होता है ।
बकरियों का कृमिरोग (Goat Disease Worm infestation) :
बकरियों को विभिन्न प्रकार की कृमि आक्रमण करती है । जैसे- गोलकृमि, टेषवर्म एवं फ्लूक ।कृमियां सामान्यत: पेट के अंदर व क्षुद्रान्त में रहती हैं तथा प्राणी द्वारा खाए गए संपूर्ण भोजन का सारतत्व खा लेती है । बकरी खाद्याभाव से क्रमशः कमजोर हो जाती है, इस Goat Diseaseमें खून की कमी नजर आती है । कृमि के संक्रमण से शारीरिक वृद्धि कम होती है और दूध उत्पादन में भी कमी आती है ।
बकरियों के प्रजनन की जानकारी (Goat reproduction)
बकरियों के प्रजनन की अवधि सितम्बर से मार्च तक होती है। बकरियों की जीवनकाल 8 वर्ष से 12 वर्ष होता है। मादा (female goat) की 11 से 15 महीने व नर (male goat) की 8 से 12 महीने के बकरे में प्रजनन क्षमता अधिक होती है। बकरी का गर्भकाल 146 से 156 दिन तक होता है। गर्मी में आने का समय 18 से 22 दिन व गर्मी में रहने का चक्र 12 से 36 घंटे का होता है। गर्भ रखने का सही समय गर्मी के 12 घंटे बाद होता है।
बकरी पालन में समस्याएं
हालांकि बकरी गरीब की गाय होती है, फिर भी इसके पालन में कई दिक्कतें भी आती हैं –
बरसात के मौसम में बकरी की देख-भाल करना सबसे कठिन होता है। क्योंकि बकरी गीले स्थान पर बैठती नहीं है और उसी समय इनमें रोग भी बहुत अधिक होता है।
बकरी का दूध पौष्टिक होने के बावजूद उसमें महक आने के कारण कोई उसे खरीदना नहीं चाहता। इसलिए उसका कोई मूल्य नहीं मिल पाता है।
बकरी को रोज़ाना चराने के लिए ले जाना पड़ता है। इसलिए एक व्यक्ति को उसी की देख-रेख के लिए रहना पड़ता है।
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SURESH BANA
बकरियों के प्रजनन की अवधि सितम्बर से मार्च तक होती है। बकरियों की जीवनकाल 8 वर्ष से 12 वर्ष होता है। मादा (female goat) की 11 से 15 महीने व नर (male goat) की 8 से 12 महीने के बकरे में प्रजनन क्षमता अधिक होती है। बकरी का गर्भकाल 146 से 156 दिन तक होता है। गर्मी में आने का समय 18 से 22 दिन व गर्मी में रहने का चक्र 12 से 36 घंटे का होता है। गर्भ रखने का सही समय गर्मी के 12 घंटे बाद होता है।
बकरी पालन में समस्याएं
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बरसात के मौसम में बकरी की देख-भाल करना सबसे कठिन होता है। क्योंकि बकरी गीले स्थान पर बैठती नहीं है और उसी समय इनमें रोग भी बहुत अधिक होता है।
बकरी का दूध पौष्टिक होने के बावजूद उसमें महक आने के कारण कोई उसे खरीदना नहीं चाहता। इसलिए उसका कोई मूल्य नहीं मिल पाता है।
बकरी को रोज़ाना चराने के लिए ले जाना पड़ता है। इसलिए एक व्यक्ति को उसी की देख-रेख के लिए रहना पड़ता है।
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